Anshuman Karol reflects on the role faith healers and religious leaders can play in promoting priority social development programs in India. They have a strong bond with communities. Can this be a catalyst for people's participation for sustainable change?
कल्पना करें की मनुष्य का अस्तित्व इस धरती से समाप्त हो जाये तो जानते हैं यह धरती वैसी ही साफ़ हो जायगी जैसी 50 वर्ष पहले थी. इसका अर्थ यह है की समस्या भी हम ही हैं और समाधान भी हम हैं. --स्वामी चिदानंद सरस्वती
कुछ महीने पहले, ऋषिकेशए उत्तराखण्ड में दो दिवसीय सर्व धर्म आध्यात्मिक कार्यशाला "हम ही हैं समाधान" का आयोजन परमार्थ निकेतन द्वारा किया गया था. मुद्दा बड़ा था. इसलिए जमघट भी बड़ा था. विभिन्न धर्मों के आध्यात्मिक गुरुजनों से लेकर, राजनीतिक, बॉलीवुड, व्यापार जगत के चेहरों, सरकारी अधिकारियों से लेकर सैनिटेशन और पानी के एक्सपर्ट्स इस अवसर पर एक मंच पर नज़र आये.
क्या इसका कारण केवल प्रधानमंत्री द्वारा देश को 2 अक्टूबर 2019 तक खुले से शोच मुक्त करने का अवाहन है जिसने प्रत्येक नागरिक में ऊर्जा भर दी है और हर कोई इस कार्य में अपना योगदान देना चाहता है? या इसके पीछे यह कारण है की अन्य सरकारी योजनाओं के उलट इस बार लोगों की जिम्मेवारी भी तय है और उसका मूल्यांकन भी सख्ती से हो रहा है? कारण कोई भी हो, लेकिन विभिन्न धर्मों का एक साथ एक मंच से स्वच्छ भारत के प्रति निष्ठा एक बड़े बदलाव की सूचक तो है ही.
एक अनुमान के अनुसार विश्व की कुल आबादी के 83 प्रतिशत लोग किसी न किसी धर्म के प्रति आस्था रखते हैं और भारत में तो यह आंकड़ा लगभग 99 प्रतिशत है. और धर्म के प्रति आस्था एक मार्ग प्रशस्त करती है जो धर्मगुरुओं के प्रति आस्था से गुजरता है.
पर यहाँ मुख्य रूप से गौर करने वाली बात यह भी है की व्यव्हार परिवर्तन के लिए आज हमें धार्मिक संस्थाओं के सहयोग की आवश्यता क्यों है? यह स्थिति वास्तव में सोचने वाली है. क्योंकि यह न केवल सरकारी कार्यक्रमों अपितु सरकारी नीतियों को भी चुनौती देने वाली स्थिति है.
हम जानते हैं की कोई भी सरकारी कार्यक्रम आम जनता के सहयोग के बिना पूरा नहीं किया जा सकता. और इन कार्यक्रमों के क्रियान्वयन में जब आम जन का सहयोग नहीं होता तो यह कार्यक्रम असफलता की भेंट चढ़ जाते हैं. जब किसी कार्यक्रम की रूपरेखा तय की जाती है तो इस बात पर कितना जोर दिया जाता है की जिनके लिए यह कार्यक्रम तय किया गया है, उनका इसके क्रियान्वयन में जुडाव कैसे होगा? यदि यह तय कर भी लिया जाये तो इसे जमीनी स्तर पर कैसे उतारा जायेगा? कार्यक्रम के क्रियान्वयन के दौरान जो सीख बनेगी उसे कार्यक्रम की बेहतरी के लिए कैसे प्रयोग में लाया जायेगा?
हालाँकि इसका उदाहरण स्वच्छ भारत मिशन--ग्रामीण के क्रियान्वयन के लिए निर्धारित दिशा निर्देशों में RALU (रेपिड एक्शन लर्निंग यूनिट) के रूप में मिलता है, लेकिन वास्तुस्थिति यह है की देश भर में केवल एक राज्य (आंध्र प्रदेश) में RALU सक्रिय है और वह भी केवल प्रिया संस्था के प्रयासों से. सरकारी तंत्र का इस प्रकार से योजनाओं के क्रियान्वयन के दिशा-निर्देशों की अवहेलना करना न केवल योजनाओं की मंशा पर सवाल खड़ा करता है अपितु आम जनमानस को योजनाओं के बेहतर क्रियान्वयन की संम्भावना से भी दूर रखता है.
लेकिन अगर धर्म के माध्यम से हम कार्यक्रमों और योजनाओं के क्रियान्वयन को सफल बना पायें तो यह एक ऐसी स्थिति होगी जिसके दूरगामी परिणाम होंगे. क्योंकि धर्म के प्रति लोगों की आस्था एक सतत और लम्बे समय तक टिकने वाली प्रक्रिया है और जिन कार्यक्रमों में व्यवहार परिवर्तन की बात हो और वहां धर्म अथवा आस्था के साथ यदि इसे जोड़ दिया जाये, तो परिणाम सुखद होंगे. और स्वच्छ भारत के अंतर्गत शोचालय निर्माण एवं उसके प्रयोग तथा कचरे के सही प्रबंधन के लिए धार्मिक संस्थाओं का योगदान महत्वपूर्ण होगा. लेकिन इसके लिए यह नितांत आवश्यक है की धार्मिक नेता या धार्मिक संस्थानए नागर समाज के अन्य अवयवों एक साथ मिलकर कार्य करें. यह संस्थान भी नागर समाज का अहम् भाग हैं.
इस नज़रिए से देखें तो समाज में विश्वास उपचारको अथवा फेथ हीलेर्स का अपना एक स्थान है. यह भी सदियों से समाज में लोगों के उपचार का काम करते रहे हैं. मुख्य रूप से जनजातीय क्षेत्रों में तो इनका अहम् योगदान रहा है. लेकिन उपचार के नए साधनों और दूर दराज के क्षेत्रों में इनकी उपलब्धता से एक टकराव की स्थिति भी समाज में बनती रहती है. क्योंकि ग्रामीण क्षेत्रों में लोगों का हमेशा से इन पर अटूट विश्वास रहा है. लेकिन यदि इन्हीं उपचारको को विभिन्न स्वास्थ्य कार्यक्रमों के प्रचार प्रसार के लिए जोड़ा जाये तो न केवल टकराव कम होगा अपितु अधिक से अधिक लोगों तक कार्यक्रमों की पहुँच को सुनिश्चित किया जा सकेगा. ऐसा ही एक प्रयास प्रिया द्वारा राजस्थान के बांसवाड़ा जिले में ग्राम पंचायतो के साथ मिलकर किया जा रहा है.
यह दोनों उदहारण हमें समाज में स्थापित नागर समाज के दो ऐसे घटकों के महत्व को उजागर करते है जो व्यव्हार परिवर्तन को न केवल एक नयी दिशा दे सकते हैं अपितु इस परिवर्तन को तीव्र और दीर्घकालिक भी बना सकते हैं.