Without dialogue, there can be no change, says Praatibh Mishra. Dialogue is the keystone if we are to raise awareness among many, bring people on a common platform, listen to each other, and support each other to change. He ends his blog post with a poignant poem, "A Journey for Change", which calls upon all of us to recognise the work women do and give them respect in the workplace, especially in the unorganised sector.
संवाद ज़रूरी है, अगर प्रथाओ को बदलना है, अगर बताना है की सही और गलत में फर्क क्या है, अगर समझाना है की गलत के खिलाफ आवाज़ कैसे उठानी है | संवाद जरूरी है अगर अपनी बात दूर तक फ़ैलाने की ज़रुरत है| ये मुमकिन नहीं की आप सभी तक पहुच सके, पर अगर आपकी बात और आवाज़ सही है तो लोग आपको सुन पाएंगे| बदलाव यात्रा में भी हमारा प्रयास है की लोग यौन उत्पीड़न और उसके दुष्प्रभावो को समझ सके और दूसरों को समझा भी सके, और ज़रुरत पड़ने पर आवाज़ बुलंद भी कर सके सिस्टम के खिलाफ |
बदलाव यात्रा के पहले चरण में हम जिला स्तर पर असंगठित वर्ग के कामगारों के साथ यौन उत्पीड़न पर संवाद करते है, जिसमे हम उन्हें जागरूक करते है कार्यस्थल पर महिलाओ के यौन उत्पीड़न कानून 2013 के विषय में |
सितम्बर में जब हमने पहले चरण में, फतेहाबाद, फ़िरोज़ाबाद और मथुरा में कामगारों के साथ संवाद कार्यक्रम का आयोजन किया, फतेहाबाद में हमारी मुलाकात बबली से हुई | बबली ने चर्चा में बेबाकी से अपनी बात रखी | बबली पास के गाँव से आयी थी और वहाँ सभी उसे जानते थे, पर फिर भी उसके घूँघट के कारण 300 महिलाओ के बीच में ये पता लगाना मुश्किल था की बात कौन बता रहा है| यौन उत्पीड़न के विषय में जब बात होती है तब लोगो का ध्यान इस बात पर ज्यादा होता है की कौन बोल रहा है और वो घटना किसके साथ हुई है |मुद्दों से भटक कर अक्सर हम व्यक्ति विशेष पर अटक जाते है और वही से बदलाव की उम्मीद ख़त्म हो जाती है, ये हमारी पुरानी आदत है| घूँघट ने हमे खुल कर इस विषय में बात करने का माहौल दिया | चर्चा के बाद कुछ समय मिला तो कुछ महिलाओ ने हमसे अलग से बात करी और अपने अनुभव साँझा करे|
इसी प्रकार सरोज ने जो की फ़िरोज़ाबाद के चूड़ी उद्योग से जुड़ी है, सवाल रखा की ऑटो में चलने वाले
![Badlav Yatra Jan 2018_2](http://pria.org/uploads/blog/Badlav-Yatra-Jan-2018_2-300x225.jpg)
अश्लील गाने क्या बंद हो सकते है? क्युकी मेरा काम के रस्ते में तो ऑटो भी आता है जिसमे चलने वाले गाने मुझे बिलकुल पसंद नहीं है|
महिलाओ ने सवाल किये की खेत में काम करने वाली महिलाओ को सुरक्षा कैसे मिलेगी, क्या सिर्फ गाली देने पर केस किया जा सकता है ? क्या फ़ोन पर बदतमीजी करने वालो को भी इसमें रखा जा सकता है ? लड़कियों के साथ ये घटनाये बहुत आम है| सवाल ईट भट्टो में बने खुले स्नान घर पर भी उठे जो की महिला मजदूरों की मज़बूरी है और यौन उत्पीड़न की वजह भी, जिसपर कोई बात नहीं करना चाहता|
ये सवाल हमारे आर्थिक वर्ग से विभाजित समाज की भी झलक देता है, गाली वो देता है जो मजदूरी देकर हम पर एहसान करता है वरना खायेंगे क्या और जियेंगे कैसे? इतना तो सहन करना ही पड़ेगा | इस सोच को बदलने के लिए हमने कुछ स्थानीय साथियों को अपने साथ जोड़ा जो की स्थानीय स्तर पर इस विषय पर बात कर सके |यात्रा के दुसरे चरण मेंचुने हुए साथियों को दुबारा ट्रेनिंग मिली ताकि वो इस विषय को गहराई से समझ सके | इन साथियों को हमने चैंपियन कहा, चैंपियन वो होता है जिसकी अपने काम में अच्छी पकड़ हो और उसे कुशलता से निभा सके | ये चैंपियंस वो आवाज़ है जिसके ज़रिये हमारा संवाद लोगो से हो रहा है और हम असंगठित कार्यस्थलो में यौन उत्पीड़न पर एक समझ बना रहे है और आगे जिसके जरिये हम सरकारी तन्त्र को कार्यरत करेंगे |
बदलाव के लिए यात्रा
बदलाव यात्रा – एक ऐसा सफ़र
जिसका मकसद है रुढी ढाचो को ललकारना
हमारे कार्यस्थलो में एक अजीब सी मायूसी है,
ये यात्रा है उस मायूसी को दूर करने के लिए
ये एक लड़ाई का आगाज़ है,
रोजमर्रा में हो रहे यौन उत्पीड़न के खिलाफ़
ये यात्रा मांग करती है, आज़ादी की
आज़ादी आत्म-सम्मान से रोटी कमाने की
ये यात्रा मांग करती है ईट भट्टियों में
दरवाज़ा बंद शौचालयों और स्नान घरो की
ये कहती है कार्यस्थलो पर अश्लील संवाद बंद हो
ये यात्रा झटकना चाहती है, उन सभी हाथो को
जो महिला कामगारों को अनचाहे छूना चाहते है
हम बढ़ चले है ताकि चुप्पी को आवाज़ मिले
हम निकले है ताकि बंद सिस्टम की चाभी चल पड़े
ये कोशिश है सभी को जगाने की और इस लड़ाई में शामिल करने की
बदलाव के लिए ज़रूरी है सुरक्षित वातावरण सभी कार्यस्थलो में
ये यात्रा है एक बेहतर कल के लिए , ये सुनिश्चित करने के लिए की
असंगठित कार्यस्थल में, यौन उत्पीड़न से महिलाओ को सुरक्षा मिले.
महिलाओ को उनके कार्यस्थलो में उचित सम्मान मिले |